कौन बोलेगा ?
घर का खाली कमरा,
घर का खाली कमरा,
हम अजनबी से मिले थे,
सड़क किनारे घास,
शरीर
प्रेम में हम बहुत कुछ बन सकते है, प्रेम संभावनाओं की उड़ान है | हर सम्भावना में इसका रूप अलग होता है, व्याकरण अलग होता है, पर आत्मा ,आत्मा एक ही होती है |
जब बोलने को बहुत कुछ हो पर वाक्य बीच में ही बैचैन होने लगे,तब भावना के सीने से स्वतः ही कविता फूट पड़ती है |
मैं पिता के सामने हमेशा खामोश रहा तब भी जब वे ग़लत थे।
सोचना चाहता हूँ समझना चाहता हूँ बोलना भी चाहता हूँ |
शोक क्या है, युगों से ढूंढ रहे हैं हम |
तुम भीड़ के साथ जीना सीख लो ये भीड़ ही अब समाज है,
आकांक्षा मुक्ति की और मृत्यु की एक सी बैचेनी पैदा करती है ।
शून्य में देखना खामोशी में अर्थ तलाशने जैसा है|