प्रेम

प्रेम में हम बहुत कुछ बन सकते है, प्रेम संभावनाओं की उड़ान है | हर सम्भावना में इसका रूप अलग होता है, व्याकरण अलग होता है, पर आत्मा ,आत्मा एक ही होती है | 

तुम ढाई साल की बच्ची बन जाओ 
मैं मिश्री घुला दूध हूँ मीठा 
मुझे एक साँस में पी जाओ | 
.......

गेहूँ का दाना बन जाता हूँ मैं,
तुम धुप बन जाओ  

उदय प्रकाश 

प्रेम कभी सुख देता है, कभी सहारा, कभी विस्तार, तो कभी सिर्फ रास | वो कभी आपको बादलों के स्वप्नलोक में ले जाता है, तो कभी आपके रिक्तकोषों को भर कर आपको पूर्ण कर देता है | कहीं यह अगाध समर्पण है, तो कहीं आत्मा में एक खिड़की | प्रेम कुछ और बन जाने का न्यौता है, कुछ और हो जाने का स्वप्न है | प्रेम अद्वैत की साधना है | 

देखना एक दिन यहीं किताब हम दोनों को एक कर देगी | 
रविश 

प्रेम कई बार एक विलाप या प्रलाप भी है| एक उदासी, एक ख़ामोशी, दूर तक पसरी हुई, अपनी सारी संभावनाओं को नकारती हुई, सभी स्वप्नों को भंग करती हुई | कुछ भी होने से इंकार करती हुई महाठगिनी माया है|

प्रेम के कई रूप होते है मेरे जीवन में वो अभाव के रूप में था।

वो अभाव,
जो एक बिना मां के बच्चे
और एक कम उम्र की लड़की के
साथ रहने की असहजता से
उत्पन्न होती है ।

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